पोषण सम्बन्धी शिक्षा देने के तीन माध्यम हैं। पहली बात कि कुछ विशेष लोगों को इस शिक्षा में निपुण और दक्ष बनाया जाए, ताकि बाद में उनके जरिए इस ज्ञान को अधिक व्यापक क्षेत्र में लोगों तक पहुॅचाया जा सके। ऐसे विशेषज्ञ तैयार हो जाएॅ तो हेल्थ सेण्टर या मातृ—शिशु कल्याण केन्द्र जैसे सार्वजनिक स्थानों पर इनकी नियुक्ति , इस उद्देश्य से की जा सकती है कि वे पोषण शिक्षा का प्रसार करें और हर व्यक्ति् को इस संदर्भ में जागरूक बनाएॅ। दूसरी बात यह है कि अन्य पेशों के लोगों को जैसे — शिक्षक वर्ग, समाज कल्याण कार्य में लगे कर्मचारी, जन स्वास्थ्य अधिकरी, नर्से, सामुदायिक परियोजनाओं के कर्मचारीगण, विविध प्रोजेक्टों में काम करने वाले लोगों को पेाषण सम्बन्धी शिक्षा से प्रशिक्षित किया जाय, जिसे निश्चित अवधि के प्रशिक्षण के रूप में अनिवार्य बनाया जाए तथा बाद में इन्हीं के माध्यम से अधिकाधिक लोगों तक इस ज्ञान का प्रसार किया जाय। चूॅकि प्राय: इस प्रकार के पेशों में लोग जनसमूह के सम्पर्क में आते हैं तो सहज—स्वाभाविक है कि आहार के पोषक तत्व, उनका महत्व, उनके अभाव से होने वाले भयंकर रोग, उनके गलत प्रयोगजनित हानियों, आहार का चिकित्सीय प्रयोग, आहार के द्वारा रोग से मुक्ति् आदि की जानकासरी यदि उन्हें दी जाएगी तो उन्हीं केे द्वारा ये सब जानकारी तमाम लोगों तक और उनके द्वारा आगे बढ़ती हुई और अधिक लोगों तक पहुॅच सकेगी। शायद लक्ष्य तक, यानी अन्तिम आदमी तक भी पहुॅच सकती है। तीसरा उपाय है कि सरकार की ओर से राष्ट्रीय पोषण कार्यक्रम चलाए जाएॅ। इन कार्यक्रमों की अपने निर्धारित कार्यक्रमों क्षरा ही—बहुत बड़े जनमसुदाय तक पहुॅच हो जाती है। इस तरह पोषण शिक्षा का स्वत: प्रसार होता रहता है।
अन्तर्राष्ट्रीय ऐजेन्सियों के द्वारा भी पेाषण शिक्षा का प्रसार किया गया है और अब भी हो रहा है। ये हैं, फाओ (FAO), हू (WHO), केयर (CARE), यूनिसेफ (UNICEF) तथा वलर्ड फॅूड प्रोग्राम (WFP) आदि। इनके उद्देश्य यद्यपि अनेकानेक हैं और ये कुपोषण के निवारण के कार्यक्रमों को चलाती है, ये पोष्टिक आहारों का जरूरतमन्द लोगों में वितरण करती हैं परन्तु, इनका योगदान पोषण शिक्षा में भी कम नहीं है। इनके प्रयासों से लोग पोषण के महत्व को समझने का प्रयास करने लगे है। पेाषण सम्बन्धी अनुसंधान करने वाली संस्थाएॅ — जैस — सेण्ट्रल फूड टेक्नोलॉजिकल इन्स्टीट्यूट (मैसूर) तथा नेशनल इन्स्टीट्यूट आॅफ न्यूट्रीशन (हैदराबाद) आदि, अपने यहॉ से अल्पावधि के शोषण शिक्षण कार्यक्रम जब—तब आयोजित करती रहती है और पेाषण के प्रसार में हाथ बटाती है। ये अपने यहॉ से पोषण सम्बन्धी जानकारी देने वाले पैम्पलेट और पत्रिकाएॅ भी निकालती हैं, जो प्रसार के श्रेष्ठ माध्यम हैं।
पोषण शिक्षा के प्रसार का एक अच्छा साधन नारी संघ या महिला मंडल है। आजकल आयेाजित किए जाने वाले आंगनबाड़ी कार्यक्रमों में महिलाएॅ एक स्थान पर एकत्रित होती है। यह एक अच्छा अवसर रहता है। महिलाओं को पोषण शिक्षा देने का। इनकों व्यावहारिक प्रदर्शन से बड़ा लाभ पहुॅचाया जा सकता है। प्राय: घर का आहार प्रबन्ध महिलाओं केे हाथ में ही होता है और वे खाने की चीज सिखाने से, उन्हें पोषण सम्बन्धी जानकारी देने से, उन्हें सस्ते और सहज उपलब्ध मसामानों से पौष्टिक व्यंजन बनाने से, सम्पूर्ण समाज का लाभ होता है। इसी अवसर का लाभ उठा कर उन्हें पोषण विज्ञान के मूल सिद्धान्तों का सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान कराया जा सकता है। विभिन्न पदार्थो में मिलने वाले पोषक तत्वों की जानकारी देकर महिलाओं के सहयोग से सम्पूर्ण समुदाय की आहार सम्बन्धी आदतों को भी बदला जा सकता है। प्रत्येक समुदाय में आहार सम्बन्धी कुछ भ्रामक आस्थाएॅ भी फैली होती है। उन्हें दूर करवाने का एकमात्र श्रेष्ठ जरिया महिलाएॅ अर्थात् गृहिणियॉ ही है।
तीसरा जरिया पोषक शिक्षा के प्रसार के लिए है — स्कूल, पाठशाला और विद्यालय के पाठ्यक्रम में पोषण विज्ञान के आरम्भिक ज्ञान को रखकर इसी स्तर पर जानकारी दी जा सकती है। अधिक जानकारी की जिज्ञासा भी उनमें पैदा की जा सकती है। पाठशाला में वाटिका लगाकर सब्जियॉ उगाने में सफलता प्राप्त करके बच्चे घरों में भी साग—सब्जी उगाने के लिए प्रेरित होत हैं। आरम्भिक शिक्षा में ही इस ज्ञान की नींव उालने से एक सजग सक्रियता (पोषण के प्रति) से सम्पन्न नई पीढ़ी का निर्माण को सकता है, जो आगे स्वत: इस संदर्भ में अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छुक रहेगी। इनकी भावी राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। इताना तो पक्की तौर से कहा जा सकता है कि संतोषजनक पोषण स्तर की प्राप्ति के लिए सुलभ, सस्ते भोज्य पदार्थो की उपयोग में लाने की कला—सम्बन्धी शिक्षा छात्र—छात्राओं को दी जानी चाहिए। इसी प्रकार से अन्य स्थलों और अन्य अवसरों का जहॉ जनसमुदाय एकत्रित होता है, (जैसे मेला, झॉकी आदि) पूरा लाभ उठाया जा सकता है। प्रदर्शनी लगाकर भी सीधे—सरल ढंग से पोषण शिक्षा का प्रसार किया जा सकता है।
पोषण शिक्षा के प्रसार का एक अच्छा साधन नारी संघ या महिला मंडल है। आजकल आयेाजित किए जाने वाले आंगनबाड़ी कार्यक्रमों में महिलाएॅ एक स्थान पर एकत्रित होती है। यह एक अच्छा अवसर रहता है। महिलाओं को पोषण शिक्षा देने का। इनकों व्यावहारिक प्रदर्शन से बड़ा लाभ पहुॅचाया जा सकता है। प्राय: घर का आहार प्रबन्ध महिलाओं केे हाथ में ही होता है और वे खाने की चीज सिखाने से, उन्हें पोषण सम्बन्धी जानकारी देने से, उन्हें सस्ते और सहज उपलब्ध मसामानों से पौष्टिक व्यंजन बनाने से, सम्पूर्ण समाज का लाभ होता है। इसी अवसर का लाभ उठा कर उन्हें पोषण विज्ञान के मूल सिद्धान्तों का सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान कराया जा सकता है। विभिन्न पदार्थो में मिलने वाले पोषक तत्वों की जानकारी देकर महिलाओं के सहयोग से सम्पूर्ण समुदाय की आहार सम्बन्धी आदतों को भी बदला जा सकता है। प्रत्येक समुदाय में आहार सम्बन्धी कुछ भ्रामक आस्थाएॅ भी फैली होती है। उन्हें दूर करवाने का एकमात्र श्रेष्ठ जरिया महिलाएॅ अर्थात् गृहिणियॉ ही है।
तीसरा जरिया पोषक शिक्षा के प्रसार के लिए है — स्कूल, पाठशाला और विद्यालय के पाठ्यक्रम में पोषण विज्ञान के आरम्भिक ज्ञान को रखकर इसी स्तर पर जानकारी दी जा सकती है। अधिक जानकारी की जिज्ञासा भी उनमें पैदा की जा सकती है। पाठशाला में वाटिका लगाकर सब्जियॉ उगाने में सफलता प्राप्त करके बच्चे घरों में भी साग—सब्जी उगाने के लिए प्रेरित होत हैं। आरम्भिक शिक्षा में ही इस ज्ञान की नींव उालने से एक सजग सक्रियता (पोषण के प्रति) से सम्पन्न नई पीढ़ी का निर्माण को सकता है, जो आगे स्वत: इस संदर्भ में अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छुक रहेगी। इनकी भावी राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। इताना तो पक्की तौर से कहा जा सकता है कि संतोषजनक पोषण स्तर की प्राप्ति के लिए सुलभ, सस्ते भोज्य पदार्थो की उपयोग में लाने की कला—सम्बन्धी शिक्षा छात्र—छात्राओं को दी जानी चाहिए। इसी प्रकार से अन्य स्थलों और अन्य अवसरों का जहॉ जनसमुदाय एकत्रित होता है, (जैसे मेला, झॉकी आदि) पूरा लाभ उठाया जा सकता है। प्रदर्शनी लगाकर भी सीधे—सरल ढंग से पोषण शिक्षा का प्रसार किया जा सकता है।
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