prechildeducation
मुख्य रूप से भाषा के माध्यम से ही सभी अपनी बात दूसरों तक पहुंचाते है। आंगनवाड़ी केन्द्र मेें 3 - 6 वर्ष के बच्चों को खेल-खेल में ही शाला पूर्व षिक्षा भी दी जाती है, खेल के माध्यम से बच्चों में भाषा एवं संवाद कौषल विकसित किया जाता है। बच्चों में भाषा एवं साक्षरता पूर्व कौशल विकसित किए जाने के लिए क्रमश: सरल से कठिन तथा अनौपचारिक से औपचारिक की ओर धीर-धीरे आगे बढ़ना चाहिए ताकि बच्चों की रूचि भी बनी रहे और उसके ऊपर उसकी क्षमता से अधिक बोझ भी न पड़े तथा वे शाला जाने के लिए मानसिक एवं शारीरिक रूप से तैयार होकर प्राथमिक शाला के नियमित छात्र के रूप में अपना आगे का अध्ययन कर सकें।
शाला पूर्व शिक्षा के आयु समूह -
स्कूल (प्री प्रायमरी), संस्थाओं, आंगनवाड़ी केन्द्र पर शाला पूर्व शिक्षा के लिए 3 आयु समूह के बच्चे आते है। गतिविधियों का सफलता पूर्वक आयोजन किए जाने के लिए हमें कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
3 - 4 वर्ष के बच्चें -
स्कूल (प्ले स्कूल), आंगनवाड़ी केन्द्र पर 3 - 4 वर्ष के बच्चें जब प्रवेश लेते है तो वह पहली बार अपने परिवार और माता-पिता से दूर होते हैं। इन बच्चों के लिए स्थान, वातावरण, वहां के अधिकांश बच्चे तथा शिक्षिका, कार्यकर्ता/सहायिका, भी बहुत हद तक अपरिचित होते है। शिक्षिका, कार्यकर्ता/सहायिका को बच्चे को बहुत स्नेह मयी तथा ममत्व भरा वातावरण देकर बच्चे का दिल जीतना आना चाहिए ताकि वह अपने को सुरक्षित महसूस कर सकें।
शुरू में इन बच्चों को रंग बिरंगे खिलौने, आदि खेलने के लिए देना चाहिए। इन बच्चों के साथ ऐसे बच्चों को खेलने के लिए बैठाना चाहिए जो आपस में हिल मिल कर खेलें। इन बच्चों को शुरू में कभी भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए ताकि बच्चें किसी भी स्थिति में अपने को अकेला तथा असहज महसूस नहीं करें। इन बच्चों के साथ गतिविधियों के लिए सहायिका को संलग्न किया जा सकता है।
4 - 5 बर्ष के बच्चे -
आम तौर पर यह आयु समूह ऐसा होता है जो स्कूल, आंगनवाड़ी केन्द्र पर आने वाले बच्चों के बीच का समूह है। अर्थात् ये बच्चे स्कूल, आंगनवाडी केन्द्र पर आने के आदि हो गए है। इन बच्चों को स्कूल, आंगनवाडी के अन्य बच्चों के साथ गतिविधियां करने, मिल कर खेलने आदि की आदत हो गई है। अब ये बच्चे आंगनवाड़ी मे अपने आप को सहज महसूस करते है।
5 - 6 वर्ष के बच्चे -
तीनों आयु समूह में ये सबसे बड़ी आयु के बच्चे हैं, जिन्हें अब अनौपचारिक से औपचारिक षिक्षा की ओर ले जाने के लिए तैयार करने की आवष्यकता है। अर्थात् इन बच्चों को स्कूल रेडीनेस कार्यक्रम से जोड़ने की आवष्यकता है।
शाला जाने की पूर्व तैयारी -
साक्षरता पूर्व कौशल से अभिप्राय है अक्षरों/अंको को समझने के पूर्व की कुशलताओं को प्राप्त करना।
उद्देश्य -
- शाला जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना ताकि शाला छोड़ने की प्रवृति को कम किया जा सके।
- दिए गए निर्देषों को सुनने समझने का ज्ञान हो विकसित हो सके।
- बच्चों में किताबों को उलटने - पलटने तथा चित्रों के माध्यम से विषय वस्तु की समझ विकसित हो सके।
- अपने नाम के अक्षर पहचान सकें। अपना नाम शब्दों में लिखा हुआ पहचान सकें।
- उसे ठीक से पेंसिल पकड़ने का अभ्यास हो जाए। सरल-सरल आकृतियों को कैंची से काट सके।
क्रियाएं -
बच्चों में भाषा एवं साक्षरता पूर्व कौषल का विकास प्रारंभ में निम्न क्रियाओं के माध्यम से किया जाना चाहिए।
सुनने और बोलने संबंधी गतिविधियां -
वार्तालाप, कहानी, कविता, पोयम, पहेलियां, अभिनय बोलकर मूक, अभिनय, स्टोरी टेलिंग - चित्रों के माध्यम से, कहानी सुनना, प्रष्न पूछना, कहानी के पात्रों पर चर्चा करना, रोल प्ले, टी.वी दिखना, रेड़ियों सुनाना, बच्चों को बोलने के अवसर देना, पिक्चर बुक के माध्यम से काॅम्पलेक्स (सरल से जटिल/कठिन) स्टोरी, एक्सप्लेन करने (समझाने) के अवसर प्रदान करना, आई काॅन्टेक्ट बनाकर (नजरें मिलाकर) प्रोत्साहन देना, निर्देष देना, सुनने बोलने वाले खेल आदि।
पढ़ने की तैयारी -
पिक्चर बुक (तस्वीरों/चित्रों)/चार्ट/पोस्टर के माध्यम से घर, घर का सामान रसोईघर, स्नानघर, सोने का कमरा, शरीर के अंगों की पहचान, हमारी आदतें, व्यक्तिगत साफ सफाई, घर की साफ-सफाई, मौसम, जानवर, मिट्टी, पेड़-पौधे, पक्षी, हाट बाजार, डाॅक्टर, फूल, गुड हेबिट्स (अच्छी आदतें), गुड मेनर्स (षिष्टाचार), जानवर, मिट्टी, पेड़-पौधे, पदार्थ (ठोस, तरल, भाप हवा आदि), रंग, हमारा भोजन, हमारे धार्मिक एवं राष्ट्रीय त्यौहार, महत्वपूर्ण दिवस, दूध और दूध से बनी वस्तुएं, मौसम अनुसार काम आने वाली वस्तुएं, त्यौहार, सप्ताह के दिन, हमारे मददगार मौसम, यातायात के साधन, माह के नाम, तन्य अतन्य वस्तुएं (इलास्टिक, कपड़ा, रस्सी, प्लास्टिक आदि), ट्रेफिक रूल्स, बाजार, मेला, गुड्डा गुडिया का खेल, हमारे खेल और खेल सामग्री, हमारी शाला, आंगनवाड़ी, रेल्वे स्टेषन, बस स्टेण्ड, अपोजिट वर्ड्स (विरोधी शब्द)।
लिखने की तैयारी -
हस्तकला, एवं लेखन पूर्व अभ्यास -
कागज से कार्य करवाना जैसे - गेंद, नाव, हवाई जहाज, दिन-रात, फिरकनी, नाव आदि, बटन बंद करना खेलना, जिप लगाना-खोलना, चोटी गंुथना खोलना, पिक्चर, ड्राइंग, कागज की कटिंग पेस्टिंग (कागज फाड़ना, चिपकाना), चित्र और शब्दों का मिलान, विभिन्न, आकृतियों में रंग भरवाना, फूल पत्तियों, बीज, रेत आदि की सहायता से सजाना। मिट्टी की आकृतियां बनवाना, रंग के छापे, स्प्रे वर्क, मोती पिरोना, फलियां छीलना, पत्तियां तोड़ना, काटना, चिपकाना, विभिन्न आकृतियों मे क्रियोसं/चाॅक पेंसिल के द्वारा रंग भरना, बिंदियों से बिंदिया मिलाना, रंगोली बनाना, रेत तथा गीली मिट्टी से मोतियों से, माचिस की तीलियों एवं पेंसिल आदि विभिन्न वस्तुओं से रंग भरना।
बच्चों से हस्तकला संबंधित गतिविधियां उनकी सूक्ष्म मांसपेषियों के विकास के लिए करवाई जाती है। इससे उनकी अंगुलियों की पकड़ धीरे-धीरे मजबूत होती है। प्रायः बच्चे जब गोल आकृति को जानने तथा पहचानने लगते हैं उसी गोल को छोटा करते जाओ तो वह शून्य बन जाता है। जब चैकोर आकृति को जानने तथा पहचानने लगते हैं वही आकृति को लंबाई में पतला करते जाओं तो एक आकृति बन जाती है। चैकोर आकृति को चैड़ाई मेे पतला करते जाओ तो आड़ी रेखा बन जाती है। प्रायः डेढ़ साल की उम्र के बच्चे घर की दीवारों और फर्ष पर गोदा गादी करने लगते है। 3 वर्ष की उम्र से बच्चों को बड़ी आकृतियों में गोल तिकोन चैकोन आकृति की तस्वीरों में रंग करने के अवसर उपलब्ध कराए जाने चाहिए। 4 - 5 वर्ष की उम्र तक बच्चों को कुछ कम छोटी आकृतियों के चित्रों में रंग भरवाना/पेंसिल/चाक आदि चलाने का अभ्यास कराना चाहिए। साथ ही अपने मन से चित्र बनाने को कहना चाहिए ताकि वे पेंसिल/चाक आदि से लाइने खींचने, लाइन मिलाने आदि का अभ्यास प्रारंभ कर सकें। 5 - 6 वर्ष के बच्चों को सरल अंक जैसे - 1, 7, 8, 4, 3 सरल अक्षर जैसे - ग, म, प, व, ब, की बड़ी और चैड़ी आकृतियों में रंग भरने के अवसर देने चाहिए।
गणित की तैयारी -
छोटा-बड़ा, कम-ज्यादा, लंबा-नाटा (ठिगना), मोटा-पतला, आकार, हलका-भारी, ऊपर-नीचे, आगे-पीछे-बीच मे, लंबा छोटा, दायां-बाया, दूर-पास, चैड़ा-संकरा, ऊंचा-नीचा, अंदर-बाहर, पहले-बाद में, नंबर (अंक ज्ञान) तुलना, स्थिति, बंटवारा, रूपया-पैसा, गिनती नमूने, मिलाना, अलग-अलग करना (घटाना) समय, छांटना, श्रेणीकरण (एक सी वस्तुओं को अलग-अलग करना) वर्गीकरण, अंक एवं चित्र को मिलाना, संभावना तलाषना, मापना, जोड़ी जमाना, कमियां ढूंढना, कम जयादा छांटना, सह संबंध स्थापित करना। जैसे - चकला बेलन, सुई धागा, रूपये पैसों का ज्ञान, अगलाा पिछला।
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