पोषण की स्थिति का अनुमान (Measurement And Situation of Nutrition)

पोषण की स्थिति का अनुमान चिकित्सकों द्वारा लगाया जाता है, जो निम्नलिखित परीक्षणों के आधार पर किया जाता है — 
  1. लक्षण परीक्षण 
  2. मानवमिति परीक्षण 
  3. जैव रासायनिक परीक्षण 
  4. खुराक सर्वेक्षण

लक्षण परीक्षण

लक्षण परीक्षण द्वारा पोषण की स्थिति का अनुमान प्राय: पूर्ण सकूलगामी बच्चों में लगाया जाता है, क्येाकि इस आयु वर्ग में पोषक तत्वों के अभाव व अधिकता के लक्षण शीघ्र दिखाई देते हैं। इसमें बच्चों के शारीरिक संगठन, बाल, मुंह, होठ, त्वचा, आॅख आदि का निरीक्षण किया जाता है। 

मानवमिति परीक्षण

इस परीक्षण के अंतर्गत व्यक्ति की ऊॅचाई, भार के सूचकांक द्वारा पोषण स्तर का पता लगाया जाता है। 

खुराक सर्वेक्षण 

पारिवारिक खुराक सर्वेक्षण द्वारा व्यक्ति के प्रतिदिन के पोषक तत्वों की ग्रहण की गई मात्रा का पता लगाकर उसकी आहार त्रुटियों को दूर करने का सुझाव दिया जाता है। 

जैव रासायनिक परीक्षण

इस परीक्षण में व्यक्ति के रक्त, मल, मूत्र, की जॉच के आधार पर पोषक तत्वों की कमी अथवा अधिकता की मात्रा का पता लगाया जाता है। 

पोषण के आधारभूत सिद्धान्त (Basic Principles of Nutrition)

पोषण सभी जीवित जीवों की प्राथमिक आवश्यकता है, उसके बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। पोषण विज्ञान अध्ययन की वह शाखा है जिसमें भोजन और उसके शरीर के द्वारा उपयोग पर प्रकाश डाला जाता है। पोषण हेतु सन्तुलित आहार की आवश्यकता पड़ती है, और यही हमारे शरीर को विशिष्ट कार्य हेतु आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध कराता है। 
आहार ही वह सामग्री भी उपलब्ध कराता है जिससे हमारा शरीर अपने टिशुओं का निर्माण एवं क्षतिग्रस्त टिशुओं की मरम्मत करता है, अंगों एवं अंगतन्त्र को नियन्त्रित करता है। व्यक्ति किसी जाति, समुदाय अथवा आर्थिक वर्ग का हो भोजन ही उसके स्वास्थ्य का आधार होता है। 
पौष्टिक भोजन द्वारा ही मानव शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक तथा सामाजिक जीवन का सन्तुलित विकास कर सकता है। सभी भोजन को पोषक आहार के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। पोषक तत्वों को ध्यान में रखते हुए, कोई भी भोजन न ही अच्छा और न बुरा होता है। 
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रत्येक व्यक्ति की अवस्था, कार्य की प्रकृति तथा शारीरिक आवश्यकता होती है। प्रात: काल का नाश्ता विशेषकर शारीरिक और मानसिक क्रियाओं के लिए ऊर्जा के रूप में महत्वपूर्ण है।

महत्वपर्ण पोषक

शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए तथा बाह्य रोगों से रक्षा करने के लिए भोजन के सभी पौष्टिक पदा​र्थो का विभिन्न अनुपातों में पाया जाना आवश्यक है। पौष्टिक तत्वों के सापेक्षि​क महत्व को ध्यान मे रखते हुए खाद्य पदार्थो को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है।
  1.  वैसे भोज्य पदार्थ जिसमें प्रोटीन तत्वों की मात्रा अधिक हो। 
  2. वैसा भोजन जिसमें कार्बोज की मात्रा अधिक हो।
  3. वैसे भोज्य पदार्थ जिसमें शारीरिक रक्षात्मक तत्वों की अधिकता हो जैसे विटाामिन तथा खनिज लवण। 
अर्थात् भेाजन में पोषकों की किस्में मुख्यत: छ: प्रकार की होती है।
(1) कार्बोहाइड्रेट्स (2)  प्रोटीन (3)  वसा/चर्बी  (4) विटामिन  (5)  जल   (6) खनिज लवण
कार्यो के आधार पर पोषक तत्वों को चार वर्गो में बांटा जाता है —
  1. ऊर्जा उत्पादक पोषक तत्व — कार्बोज, वसा, प्रोटीन। 
  2. शरीर निर्माणक पोषक तत्व — प्रोटीन खनिज, लवण, जल। 
  3. सुरक्षात्मक पोषक तत्व — विटाामिन, खनिज लवण, जल।
  4. नियमात्मक पोषक तत्व—जल व फोक।  

वृद्धि और विकास के लिए पोषण — 

शारीरकि तथा मानसिक विकास को समूचित बनाए रखने के लिए शरीर को उत्तम पोषण की आवश्यकता होती है। इससे शरीर का उत्तम, विकास, जिसके अंतर्गत सीधी अस्थियॉ तथा भुजाएॅ चौड़ी, सपाट छाती, मजबूत एवं स्वस्थ दांत, कान्तिमय त्वचा सभी कुछ सम्मिलित है।
शरीर में पोषक तत्वों की मात्रा हमारे भेाजन की आदत एवं भोज्य पदार्थो के गुणों से निर्धारित करता है। हमारे शरीर की सबसे छोटी क्रियाशील इकाई कोशिका से लेकर अंगों का विकास इसी भोजन की उपलब्धता से सम्भव है।
पोषण के द्वारा ही हमारे शरीर को आवपश्यक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। शरीर में ऊष्मा बनाए रखने शारीरिनक कार्य करने के लिए मांसपेशियों को सक्रियता प्रदान करने के लिए एवं हमारे दैनिक कार्यो को सम्प्न्न करने हेतु ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
सामान्यत: शारीरिक श्रम करने वालों को मानसिक​ श्रम करने वालेां की अपेक्षा अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। भोजन में प्रोटीन के तत्व हमारे ​शरीर का निर्माण करते हैं। खनिज लवण तथा विटाामिन जैसे पोषक तत्व हमारे शरीर के लिए सुरक्षात्मक कार्य करते है।

अल्प पोषण तथा कुपोषण — 

जब शरीर को आवश्यकता के अनुसार पोषक तत्व नहीं मिलते हैं तथा पोषण गुणात्मक स्तर पर भी निम्न स्तर के होते हैं तो उस अवस्था को अल्प पोषण कहा जाता है। यह शारीरिक एवं मानसिक क्षमता के विकास में हास लाता है तथा हीनता जन्य रोग का शिकार हो जाता है।

अल्प पोषण के कारण — 

इसके दो महत्वपूर्ण कारण है —
  1. परिस्थितियों का अनुकूल न होना। 
  2. भेाजन का मात्रा तथा गुणवत्ता के आधार पर दोषपूर्ण होना। 
अल्प पोषण भारत की एक महत्वपूर्ण समस्या है। क्योंकि यहां पर जिस परिस्थिति में कार्य किया जाता है उस स्तर का पोषण उपलब्ध नहीं हो पाता है। इसकी अनेक वजहें हैं जैसे अत्यधिक कार्य, अस्वस्थ वातावरण, अनियमित तथा अल्प भेाजन आदि।
यह पूर्णतया सत्य है कि अल्प पोषण मानव शरीर को क्षीण बना देता है तथा धीरे—धीरे मानव अनेको रोगों से ग्रस्त हो जाता है। शरीर की वृद्धि रूक जाती है, बाल झड़ने लगते हैं, आखों की रेाशनी कम हो जाती है तथा रोग से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है।
कुपोषण के कारण कई प्रकार की बीमारियां हो जाती है जो निम्नलिखित है —

क्वाशियोरकर 

यह प्राय: बच्चों में प्रोटीन की कमी के कारण होता है। जब बच्चों को दूध छुडाने के पश्चात् पूरक आहार सही तरीके से नहीं मिल पाता है तब यह रोग होता है।

मैरास्मस — 

यह छोटे बच्चों में तब होता है जब कैलोरी की अधिक कमी हो जाती है। इसके कारण बच्चों के चेहरे सिकुडें तथा झुरींदार हो जाते हैं तथा शरीर से बड़ा सिर दिखाई पड़ता है।

रक्ताल्पता — 

यह शरीर में लौह लवण की कमी तथा प्रोटीन की कमी के कारण होता है। इसमें शरीर में लाल रक्त की कमी हो जाती है तथा व्यक्ति की आंखो में पीलापन तथा शीघ्र ािकावअ की अनुभूति होती है। यह अधिकंशतया बच्चों एवं महिलाओं में होता है।

फ्लॉरोसिस — 

यह रोग जल में फ्लोरीन की अधिकता के कारण होता है। रोग के कारण दांतों में धब्बे पड़ जाते है तथा उनमें गड्ढे हो जाते है। भारत में कुपोषण की समस्या अत्यधिक है तथा इसे दूर करने की शीघ्र आवश्यकता है। पोषण विज्ञान के अंतर्गत मुख्यत: शारीरिक पोषण की आवश्यकता तथा प्राप्ति के स्त्रोत एवं इसकी कमी से होने वाली बीमारियों का अध्ययन किया जाता है इसमें खाने की आदतें, भार का नियन्त्रण, पौष्टिक तत्वों की मात्रा आदि इसके सिद्धान्त है।
भार को उचित रखने का सबसे आसान तरीका है भेाजन की आदतों को ठीक करना तथा शारीरिक व्यायाम को दिनचर्या में शा​मिल करना। इन दोनों के कारण शरीर कम मोटा होता है तािा मांसपेशियों की बनावट भी उचित रहती है। आदर्श वजन तय करते समय शारीरिक बनावट पर ध्यान देना आवश्यक होता है। पुरूषों में शारीरिक वसा का वजन शरीर के कुल वजन के 20 प्रतिशत और स्त्रियों के लिए 30 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। 
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