यह अकार्बनिक खनिज पदार्थ है। साधारण शब्दों में इसे चूना भी कहते हैं। कैल्शियम की मात्रा शारीरिक वजन की 1.5 से 2 प्रतिशत तक होती है जिसमें 99 प्रतिशत अस्थियों एवं दॉतों में और शेष 1 प्रतिशत रक्त, विभिन्न द्रव एवं ऊतको में रहता है। कुछ खनिज तत्वों का 1/2 भाग कैल्शियम ही रहता है। नवजात शिशु के शरीर में इसकी मात्रा बहुत ही कम होती है क्योकि उनकी कोमल अस्थियॉ खनिज लवणों को अवशोषित नहीं कर पाती हैं। अवस्था बढ़ने के साथ—साथ इनका संग्रह भी शरीर में अधिक होता है। एक औसत व्यक्ति के शरीर 1000 — 1200 ग्राम तक कैल्श्यिम रहता है जबकि शिशु के शरीर में जन्म के समय लगभग 27.5 ग्राम रहता है।
कैल्श्यिम के कार्य या उपयोगिता
कैल्शियम फॉस्फोरस के साथ हमारी अस्थ्यिों, दॉतों, एवं अन्य अंगों में पाया जाता है। यह दॉतों को स्वस्थ, शक्तिशाली और मांसपेशियों को क्रियाशील बनाए रखता है। अस्थियों में 60 — 70 प्रतिशत कैल्शियम फॉस्फोरस पाया जाता है। यह सोडियम पोटाशियम एवं मैग्नीशियम के साथ मांसपेशियों में संकुचन पैदा करता है जिससे हमारे हाथ, पॉव, गर्दन कमर एवं अन्य सभी अंगों में हरकत हो पाती है।
- यह हृदय की मांसपेशियों में भी संकुचन के कार्य में सहायक होता हैं
- यह रक्त को थक्का (Coagulation) के रूप में जमाने में सहायता करता है।
- आंतरिक ग्रंथियों के स्त्राव निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करता है और एन्जाइम निर्माण में भी सहायता करता है ।
- यह अम्ल और क्षार की मात्रा को शरीर में संतुलित रखता है।
- यह कोशिका झिल्ली की पारगम्यता (Permeability) बनाये रखने में सहायक होता है।
अभी परीक्षणों से यह ज्ञात हुआ है कि शरीर में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम रहने से परमाणु परीक्षण के रेडियेशन (Radiation) से निकले स्ट्रोनियम (Strontium) अस्थियेां में जमने नहीं पाता। सट्रोनियम रेडियेशन अस्थियों को कमजोर बना देता है।
कैल्शियम अस्थियों में संग्रहित रहता है और उसकी अतिरिक्त मात्रा अस्थियों के अंतिम सिरों में एकत्रित हो जाती है जो रक्त में कैल्शियम की कमी होने पर पहुॅच जाती है।
यह शरीर वृद्धि करता है। अस्थियों में वृद्धि कैल्शियम से है और अस्थियों में वृद्धि होने से शरीर में वृद्धि होती है।
यह रक्त शिराओं में रक्त के अभिसरंचरण (Permeation) के लिए आवश्यक है।
कैल्शियम प्राप्ति के साधन —
कैल्शियम दूध में अकार्बनिक लवण के रूप में विद्यमान रहता है। दूध और उससे बनी वस्तुएँ यथा मक्खन निकाला दूध, पाउडर दूध, सूखा दूध, मट्ठा कैल्शियम प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है। दूध में कैल्शियम और फॉस्फोरस का ठीक अनुपात रहता है, फलत: कैल्शियम का शोषण अच्छी तरह होता रहता है। दूध में लैक्टोज की मात्रा रहती है जो कैल्शियम को शोषण में मदद करता है। बच्चों को अधिक दूध की आवश्यकता पड़ती है। आहार के साथ दूध लेने से ही कैल्शियम की पूर्ति शरीर में होती है। इसके अतिरिक्त पालक, हरी पत्तीदार सब्जियॉ मेथी साग, बथुआ, पत्तागोभी, फूलगोभी, शलजम, मछली तिल, सूखा नारियल एवं रागी इसकी प्राप्ति के अच्छे साधन है।
कैल्शियम की कमी के लक्षण
कैल्शियम की कमी से अस्थियों एवं दॉतों में कैल्शियम जमने की क्रिया नहीं हो पाती है, फलत: इनके बढ़ने, मजबूत होने एवं ठोस होने में कमी आ जाती है। अस्थियॉ निर्बल हो जाने से टूटने एवं विकृत होने की संभावना रहती है।
शरीर में फॉस्फोरस एवं विटामिन 'डी' की कमी होने से भी कैल्शियम की कमी हो जाती है, जिससे बच्चों में रिकेट्स नामक रोग हो जाता है। इस रोग में बच्चों के शरीर की वृद्धि रूक जाती है, मांसपेशियॉ ढीली हो जाती है, टांगो की अस्थियॉ टेढी हो जाती है एवं शीघ्र टूटने वाली हो जाती है। बच्चों का माथा ललाट के पास बाहर निकला मालूम होता है।
- वृद्धावस्था में कैल्शियम की कमी से जोड़ो में दर्द होना शुरू हो जाता हैं कैल्शियम की कमी से अस्थियॉ दुर्बल हो जाती है। इस रोग को आस्टोपोरोसिस कहते है। इसमें कैल्शियम की कमी हो जाती है। जिससे अस्थियॉ दुर्बल हो जाती है और साधारण सी दुर्घटना होने पर चटक जाती है।
- प्रौढ़ावस्था में कैल्शियम की कमी से आँस्टोमलेशिया नामक रोग हो जाता हैं ।
- कैल्शियम की कमी से रक्त जमने में काफी समय लगता है और रक्तस्त्राव शीघ्र नहीं रूकता।
- रक्त में कैल्शियम की कमी से मांसपेशियॉ के संकुचन लगते हैं और उनमें ऐंठन होने लगती है जिसे टिटैनी रोग कहते है।
- कैल्शियम की कमी से बच्चों को कभी — कभी दौरे पड़ने लगते हैं।
कैल्शियम की अधिकता से हानियॉ —
बच्चों में कैल्शियम की अधिकता होने से भूख कम हो जाती है, वमन होने लगती है, कब्ज हो जाती है, मांसपेशियॉ ढीली हो जाती है एवं रक्त में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है एवं रक्त में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाने से रक्त में यूरिया, प्लाज्मा एवं कॉलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ जाती है। जो बच्चे विटामिन 'डी' अधिक लेते है उनमें कैल्शियम की अधिकता हो जाती है। प्रौढावस्था में क्षारीय तत्वों का अधिक सेवन करने से शरीर में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है। इसस तीव्र रक्तचाप, अमाशय एवं आँतों में रक्तस्त्राव हो जाता है। कैल्श्यिाम की अधिकता से गुर्दे में पथरी होने की संभावना रहती है।